Kabir Das Ka Jeevan Parichay- कबीर दास का जीवन परिचय

कबीर दास का जीवन परिचय और प्रारंभिक जीवन- Kabir das ka jeevan parichay in hindi

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Kabir das ka Jeevan Parichay

       कबीर दास भक्तिकाल में एकमात्र संत थे जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज को बदलने का प्रयास किया। जब तक वे जीवित रहे, उन्होंने समाज की बुरी आदतों के खिलाफ आवाज उठाई। कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das ka Jeevan Parichay) और उनकी रचनाएँ पढ़कर उनकी सोच को समझ सकते हैं।

       15वीं सदी में हिंदी साहित्य के भक्तिकाल में संत कबीर दास सबसे प्रसिद्ध कवि और विचारक थे। इन्हें भक्तिकाल की निर्गुण शाखा “ज्ञानमर्गी उपशाखा” से संबंध था। इनकी गंभीर रचनाओं और विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को बहुत प्रभावित किया था। साथ ही, उन्होंने अंधविश्वास, कुरीतियों, कर्मकांड और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। सिक्खों का “आदि ग्रंथ” भी संत कबीर दास की कुछ रचनाओं को शामिल करता है। आइए जानते हैं संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jeevan Parichay) कैसा रहा था।

         इस कवि ने लोगों को जागरूक करने के लिए कितने महत्वपूर्ण काम किए हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी उसे नहीं भूले हैं। Kabir Das Ka Jeevan Parichay में, इस कवि ने लोगों को उनकी समस्याओं को बताकर उनकी मदद करने की कोशिश की। इस कवि ने एक समाज सुधारक के तौर पर लोगों को उनकी समस्याओं को बताकर उनका भला करने का प्रयास किया। यही बात उनकी कविताओं में भी है।

कबीर दास का जन्म और परिवार- Kabir das ka Jeevan Parichay

           माना जाता है कि महान कवि और समाज सुधारक कबीर दास का जन्म 1398 ई. के ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन हुआ था। कबीरदास का जन्म शायद काशी में हुआ था। ग्रगॉरीअन कैलेंडर के अनुसार, कबीरदास जयंती मई या जून में मनाई जाती है।

          कबीर दास जी को बहुत छोटी उम्र में विवाह कर दिया गया था। कबीर दास की तरह उनकी पत्नी लोई एक साधारण परिवार से थीं। विवाहित होने के कुछ सालों के भीतर, इस प्रसिद्ध कवि ने दो बच्चों को जन्म दिया।

          कबीर दास का जीवन परिचय: वे मुस्लिम परिवार में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा एक हिंदू गुरु से ली। उन्होंने इन दोनों धर्मों के बीच भेदभाव से खुद को बचाया। वह खुद को “राम का बेटा” और “अल्लाह का बेटा” कहते थे। कबीर दास की मृत्यु होने पर मुस्लिम और हिंदू धर्म के लोगों में उनके पार्थिव शरीर को लेकर बहस हो गई।

कबीर दास का प्रारंभिक अध्ययन और शिक्षा

         कबीर दास का जीवन परिचय: वे मुस्लिम परिवार में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा एक हिंदू गुरु से ली। उन्होंने इन दोनों धर्मों के बीच भेदभाव से खुद को बचाया। वह खुद को “राम का बेटा” और “अल्लाह का बेटा” कहते थे। कबीर दास की मृत्यु होने पर मुस्लिम और हिंदू धर्म के लोगों में उनके पार्थिव शरीर को लेकर बहस हो गई।

         कबीर दास के दोहे में इतनी गहराई है कि आज भी दुनिया भर के साहित्यकार कबीर की रचनाओं के बारे में अधिक जानने की कोशिश कर रहे हैं। कबीरदास के मशहूर दोहे पर आज भी अध्ययन हो रहे हैं।

         प्राप्त जानकारी के अनुसार, कबीर दास ने स्वयं अपना एक भी ग्रंथ नहीं लिखा था। कबीर दास ने अपने ग्रंथों को लिखने के लिए अपने शिष्यों से कहा, और उनके शिष्यों ने सारे ग्रंथ लिखे।

कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ: कबीर दास जी के दोहे- Kabir Das Ke Dohe

        कबीर दास ने अपने जीवनकाल में 72 से अधिक रचनाएँ लिखी, जो आज भी दुनिया भर में पढ़ी जाती हैं। कबीरदास के दस दोहे आज भी लोगों द्वारा दोहराए जाते हैं:

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥

अर्थात्: कबीरदास ने कहा कि धैर्य रखें, धीरे-धीरे सब कुछ हो जाता है, क्योंकि अगर कोई माली सौ घड़े पानी से किसी पेड़ को सींचने लगे, तो भी फल ऋतु आने पर ही लगेगा।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

अर्थात्: कबीर कहते हैं कि जब मैंने दुनिया में बुराई खोजने की कोशिश की, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं मिला और जब मैंने खुद में झांका, तो मुझे खुद से बुरा कोई नहीं मिला।

चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए।
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए॥

अर्थात्: कबीरदास ने कहा कि चिंता एक डायन है जो आदमी का कलेजा काटकर खा जाती है। वैद्य इसका उपचार नहीं कर सकते। कितनी दवा लेगा? यानी चिंता की कोई दवा नहीं है।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय॥

अर्थात्: कबीरदास जी कहते हैं कि अगर गुरु और भगवान एक साथ खड़े हैं, तो सबसे पहले गुरु के चरणों को छूना चाहिए क्योंकि गुरु ही प्रभु तक पहुंचने का रास्ता दिखाते हैं।

साईं इतना दीजिए, जो मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥

अर्थात्: कबीरदास ने कहा कि प्रभु, तुम मुझे इतना दो कि मैं खुद अपना खाना खा सकूं और आने वाले लोगों को भी खाना दे सकूं।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

अर्थात्: इतना ऊंचा होने के बावजूद, खजूर का पेड़ राही को छाया नहीं दे सकता, और उसके फल इतने ऊपर लगते हैं कि आसानी से तोड़े नहीं जा सकते। उसी तरह, आप कितने भी बड़े आदमी हो, अगर आप विनम्र नहीं हैं और दूसरों की मदद नहीं करते हैं, तो आपके बड़े होने का कोई मतलब नहीं है।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥

अर्थात्: कबीर दास कहते हैं कि आदमी की बोली हमेशा ऐसी होनी चाहिए कि दूसरों को अच्छा लगे और खुद को भी खुश महसूस हो।

जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय।
मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय॥

अर्थात्: मृत्यु को जीतने वाले ही जीते हैं। वह मरने से पहले अमर हो जाता है। वासना, जिसके सारे अहंकार खत्म हो गए हैं, जीवित रहते-रहते मुक्त होते हैं।

मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत।
मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत॥

अर्थात्: मैं भूलवश जानता था कि मेरा मन भर गया, लेकिन वह मर गया। मरने के बाद भी उठकर मेरे पीछे लग गया, बालक की तरह।

शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल।
काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल॥

अर्थात्: गुरु की बात मानकर मुक्ति मिलती है। काम से उसे गुस्सा नहीं आता और उसे विचारों से छुटकारा मिलता है।

               कबीर दास की जीवनी बताती है कि वे एक संत, कवि और समाज सुधारक थे। Kabir Das ka Jeevan Parichay की प्रत्येक पंक्ति में जात पात और अंधविश्वास को उजागर करने का प्रयास किया गया था।

कबीर दास जी की रचनाएँ और उनका भक्ति के संदेश

              कबीर बहुत पढ़ा-लिखा नहीं था। “मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ,” वे स्वयं कहते हैं।जिससे उन्होंने स्वयं लेखन नहीं किया है। बाद में भी कई महत्वपूर्ण ग्रंथों में उनकी वाणी से कहे गए अनमोल वचनों के संग्रह का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि उनके शिष्यों ने उनके भाषणों को “बीजक” में संकलित किया।

कबीर दास जी का भक्ति के संदेश

          कबीर ने कहा कि गुरु सबसे बड़ा है। भक्तों का कर्तव्य है कि वे अपने गुरु की तन मन धन से सेवा करें और उनके वचनों पर विश्वास करें। विपत्ति आने पर आपको अपने गुरु को याद करना चाहिए। इस दौरान किसी और के बारे में ज़रा भी सोचना नहीं चाहिए।

          Kabir das ka Jeevan Parichay में सबसे अच्छी बात थी कि वे किसी भी भाषा में लिख सकते थे। उन्होंने उस भाषा के स्थानीय शब्दों का इस्तेमाल किया। यही कारण है कि कबीरदास जी के दोहे आज भी देश भर में अलग-अलग पुस्तकों से पहचाने जाते हैं।

          कबीर ने कहा कि आपको प्रेम और सद्भाव से साधु गुरु की सेवा करनी चाहिए। गुरुगुण से संपन्न साधु को भी अपने गुरु के समान मानना चाहिए। कबीर ने भक्ति के कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं।

          कबीर दास ने सोचा कि ईश्वर हर जगह है। हर मन में परमेश्वर रहता है। इसलिए ईश्वर को खोजने की जरूरत नहीं है। ईश्वर को ध्यानपूर्वक स्मरण करना चाहिए।

कबीर दास जी की रचनाएँ

          कबीर दास भक्ति काल के एकमात्र कवि थे जिन्होंने समाज को सुधारने और पुरानी बुराइयों पर चोट करने की कोशिश की। कबीरदास ने लोगों को जागरूक करने के लिए कालजयी साहित्य लिखा। यही कारण है कि उन्हें निर्गुण धारा के सबसे बड़े कवियों में से एक माना जाता है। कबीरदास के दोहे और कविताएं आज भी इतनी मार्मिक लगती हैं कि जो कोई भी कबीरदास के दोहे अर्थ सहित पढ़ता है, वह उनकी पुस्तकों को बार-बार पढ़ता है।

          कबीर दास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जात-पात, छुआछूत और अंधविश्वास को दूर करने का प्रयास किया। उनके दोहे सीधे और कटाक्षपूर्ण हैं। कबीरदास के प्रसिद्ध दोहे लोगों को जाति और धर्म से परे एकजुट करने की कोशिश करते हैं। इन्हीं गुणों के कारण कबीर दास को एक अच्छा कवि और समाज सुधारक भी माना जाता है।

Kabir das ka Jeevan Parichay की बात करें तो उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐसी रचनाएं लिखीं जो आज भी लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कबीर दास के जीवन में क्या प्रमुख चुनौतियां सामने आईं?

कबीर दास का सबसे बड़ा संघर्ष धार्मिक आडंबर, जातिवाद और समाज के पिछड़े वर्गों के प्रति भेदभाव था।

कबीरदास के जीवन में उनके प्रमुख अनुयायी कौन थे?

कबीर दास के जीवनकाल में उनके अधिकांश अनुयायी कबीर पंथी थे, जो उनकी शिक्षाओं को फैलाने और उनके भजनों को प्रचार करने का काम करते थे।

कबीरदास के विचारों पर प्रमुख दार्शनिकों का क्या प्रभाव पड़ा?

संत शंकराचार्य, रामानंद और अन्य भक्ति संतों ने कबीर दास के विचारों पर मुख्य प्रभाव डाला था।

कबीरदास ने क्या सिखाया?

कबीरदास की शिक्षाओं में प्रमुख मुद्दे थे ईश्वर की निराकारता, धार्मिक एकता और सामाजिक समानता।

निष्कर्ष

             इस लेख में कबीर दास की अनूठी रचनाओं और उनका जीवन परिचय (Kabir Das ka Jeevan Parichay) का विश्लेषण किया गया है। कबीरदास जी के अमर साहित्य में सहिष्णुता, समाज सुधारक विचार और भक्ति के संदेश आज भी हमें प्रेरित करते हैं। यही कारण है कि आज भी कबीरदास जी को देश और दुनिया भर के सबसे महान कवियों में गिना जाता है।

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